
स्तनपान कराने से शिशु को स्वास्थ्य लाभ Breastfeeding Benefits For Baby in hindi – Stanpan Se Labh
प्रकृति बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए मां के शरीर में दूध का निर्माण करती है। इस दूध में कम से कम 100 तत्व ऐसे होते हैं जो गाय के दूध में भी नहीं होते और न किसी प्रयोगशाला में विकसित किए जा सकते हैं।
स्तनपान मां और बच्चे के बीच के मधुर संबंध की शुरुआत है। यूं तो जन्म से पूर्व ही मां और बच्चे के बीच एक गहरा और मधुर रिश्ता बन जाता है लेकिन स्तनपान के बाद इस रिश्ते में प्रगाढ़ता आती है। मां से मिलने वाली अमृत धारा से जीवन में नई कॉपल खिलती हैं। शिशु को संघर्ष का माद्दा मिलता है। संघर्ष संसार से और सांसारिक आघातों से। मां के आंचल का दूध शिशु में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है।
कई बार चुनौतीपूर्वक कहा जाता है कि अगर मां का दूध पिया है.। यानी मां का दूध पिया हो तो व्यक्ति में कुछ भी कर गुजरने की ताकत आ जाती है। वैसे स्तनपान मां और शिशु दोनों के लिए लाभदायक है। इससे दोनों को कुछ न कुछ हासिल होता है। शिशु को पोषण मिलता है। यह शिशुओं के लिए जीवन रक्षक का काम करता है। लेकिन मां भी इससे फायदे में रहती है। वह भी कई गंभीर बीमारियों से बच सकती है।
शिशु के लिए अमृत है स्तनपान
कहा जाता है, जन्म के छह-आठ महीने तक बच्चे के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम है। मां का दूध पचने में आसान होता है। उसमें कई प्रकार के प्राकृतिक रसायन होते हैं। जेपी अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रीनू जैन कहती हैं ‘मां के दूध में शिशु के विकास के लिए जरूरी सभी प्रकार का पोषण होता है। इसलिए इससे पेट की गड़बड़ियों की आशंका नहीं होती। साथ ही यह बच्चे को तमाम तरह की एलर्जी से भी दूर रखता हैं।’
मां का दूध शिशु की इम्युनिटी बढ़ाने में भी सहायक होता है। जिन शिशुओं को पर्याप्त रूप से मां का दूध नहीं मिलता, उनमें कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। उनमें बुद्धि विकास अपेक्षाकृत कम होता है। अगर शिशु प्रीमेच्योर हो, तो उसे आंत संबंधी रोग हो सकता है। मां का दूध इससे भी बचाता है। इसके अलावा स्तनपान से बच्चे को दमा और कान की बीमारियां नहीं होती। बड़े होने पर ब्लड कैंसर, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा भी कम हो जाता है।
शिशु की बीमारियों की पहचान व घरेलू इलाज Bachcho Ki Bimari Ka ilaj Hindi
बच्चे को स्तनपान कब तक कराएं, अक्सर महिलाओं को इस बात का पता नहीं होता है। कैलाश अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ एच.पी. सिंह कहते हैं, ‘जन्म के तुरंत बाद स्तनपान शुरू कर देना चाहिए। इस समय बच्चा ब्रेस्ट फीड करने का तरीका सबसे जल्दी सीख सकता है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि प्रसव के तुरंत बाद स्तन से पीले रंग का द्रव कोलोस्ट्रम निकलता है जिसमें शिशु को संक्रमण से बचाने की क्षमता होती है। यह एक तरह का टीका होता है। अगर बच्चे को यह दूध पिलाया जाए तो उसके लिए लाभदायक होता है।
जिन महिलाओं की डिलीवरी सिजेरियन होती है वे भी स्तनपान करा सकती हैं। हां इसके लिए उनके एनीस्थीसिया के प्रभाव से बाहर आना जरूरी होता है।’ बच्चे को दूध पिलाते समय उसका सिर सीधा रखना चाहिए। रात को लेटकर दूध पिलाने से भी बचना चाहिए। एक बार दूध पीने के बाद बच्चे को खींचकर बाहर करना सही तरीका नहीं है। दूध से हटाने के लिए उसके मुंह के किनारे की तरफ एक उंगली डालकर उसे हटाया जाना चाहिए।
बच्चों के तुतलाने व हकलाने का घरेलू उपचार Haklana Tutlana Ka Ilaj
कई बार स्तनों में दूध भरने के कारण कड़ापन आ जाता है। ऐसा न हो, इसके लिए बच्चे को | जल्दी-जल्दी दूध पिलाना चाहिए। अगर इसके | बावजूद ऐसा हो तो अतिरिक्त दूध को निकाल कर फ्रिज में रखा जा सकता है। अगर फ्रिज बंद न हो तो घंटे वह दूध 24 घंटे तक खराब नहीं होता। बच्चे को स्तनपान हर दो से तीन घंटे के बाद कराना चाहिए। डॉ. सिंह के अनुसार एक बार में हिए। दोनों ब्रेस्ट से कम से कम 10 से 15 मिनट तक दूध पिलाया जाना चाहिए।
बच्चे को जन्म के कम से कम छह महीने तक स्तनपान कराना चाहिए। अगर संभव हो तो दो साल तक मां का दूध पिलाना चाहिए। पर साथ में पौष्टिक आहार भी देना चाहिए। अगर मां बीमार हो तो भी स्तनपान कराया जाना चाहिए। आमतौर पर साधारण बीमारियों से स्तनपान करने वाले शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। हां, बीमारी गंभीर हो तो अपने चिकित्सक से राय लेनी चाहिए।
स्तनपान कराने से माँ को स्वास्थ्य लाभ
महिलाओं को भी स्तनपान से कई प्रकार के लाभ होते हैं। इससे उन्हें गर्भावस्था के बाद होने वाली शिकायतों मुक्ति से मिल जाती है। प्रसव के बाद एक समस्या यह होती है कि महिलाओं को अत्यधिक मात्रा में ब्लीडिंग होती है। यदि बच्चे को उचित मात्रा में स्तनपान कराया जाए तो इस समस्या से निजात मिलती है।
इसके अतिरिक्त प्रसव के बाद कई भी महिलाओं का वजन एकाएक बढ़ जाता है। इसके लिए हेल्थ केयर स्पेशलिस्ट एक्सरसाइज, योग और जिमिंग की सलाह देते हैं। इन उपायों को तो अपनाना ही चाहिए, साथ ही स्तनपान भी कराते रहना चाहिए।
इससे वजन बढ़ने की समस्या भी कम होती है। स्तनपान कई गंभीर बीमारियों का इलाज भी है। स्तनपान करानेवाली महिलाओं को स्तन या गर्भाशय के कैंसर का खतरा भी कम होता है। इसके अतिरिक्त स्तनपान एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक भी है।
- = एक बार में दोनों ब्रेस्ट से कम से कम 10 से 15 मिनट तक दूध पिलाया जाना चाहिए।
- = रात को लेटकर दूध पिलाले से बचना चाहिए।
- = बच्चे को जन्म के कम से कम छह महीने तक स्तनपान कराना चाहिए
- = अगर संभव हो तो दो साल तक मां का दूध पिलाना चाहिए।
शिशु के स्तनपान कराने के तरीके
हर शिशु का अपना ही व्यक्तित्व होता है। उसी तरह उसके स्तनपान करने का अंदाज भी अनूठा हो सकता है।
बाराकुडा नर्सिंग स्टाइल : बाराकुडा स्टाइल में बच्चा दस से बीस मिनट तक लगातार दूध पीता है। ऐसे शिशु कई बार चोट भी पहुंचाते हैं। चिंता न करें जल्द ही आपके निप्पल अभ्यस्त हो जाएंगे।
उत्साही अप्रभावी : यदि शिशु बड़े उत्साह से स्तन पर लपकता है, पर उसे मुंह में न ले पाने की वजह से रोने लगता है तो जान लें कि वह ‘एक्साइटिड इनइफेक्टिव’ है। आपको बड़े धैर्य व स्नेह से उसे शांत करने के बाद ही दूध देना चाहिए।
टालमटोल करने वाला : ऐसे बचे जन्म के चार-पांच दिन बाद भी दूध पीने में कोई उत्साह नहीं दर्शाते। इनके साथ जोर-जबरदस्ती न करें। जब ये पूरी तरह से तैयार होंगे तो शौक से दूध पिएंगे।
गारमेट : ऐसे शिशु मुंह में निप्पल लेकर खेलते हैं। जरा-सा दूध पीकर उसके घूट ऐसे शिशु कई का पूरा स्वाद लेते हैं। उन्हें लगता है कि वे भोजन का पूरा आनंद ले सकते हैं। उन्हें उनके भोजन का आनंद लेने दें। भई, अपना-अपना स्टाइल होता है।
रेस्टर : ऐसे बच्चे कुछ मिनट दूध पीते हैं तथा कुछ मिनट का आराम लेते हैं, कुछ तो पन्द्रह मिनट की झपकी भी मार लेते हैं | ऐसे बच्चों को दूध पिलाने में समय लगता है। इनके साथ जबरदस्ती न करें। इन्हें इनके तरीके से ही दूध पीने दें।
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