
जाने डायबिटीज रोग में क्या सावधानी रखनी चाहिए Madhumeh Me Saavdhani – आइये जानते हैं इसके बारे में –
मधुमेह (डायबिटीज) नाम का रोग बिना चेतावनी दिए ही शरीर में अपना स्थान लेता है. यह रोग कब हुआ, कैसे हुआ, इसका पता ही नहीं चलता, छुपे शत्रु के रुप में शरीर में अड्डा जमाकर धीरे-धीरे अपने लक्षण प्रकट करता है. इसकी गंभीरता रोगी को नहीं होती और हमेशा गाफिल ही रहता है.
जब मूत्र की या ज्वर कमजोरी की बीमारी में रक्त या मूत्र परीक्षण किया जाता है, तब कभी कभार मधुमेह का निदान हो जाता है. सामान्यतया मधुमेह का निदान आकस्मिक से होता है. शारीरिक एवं मानसिक थकान अशक्ति शरीर में वेदना, आंखों में अंधेरा छा जाना, चक्कर आना, मूत्रोंन्द्रिय मे खुजली होना, चश्मे का नंबर कम-ज्यादा बार-बार होना, प्यास लगना, ज्यादा भूख लगना, शरीर में रात दिन आलस्य होना, रात को बार बार पेशाब करने उठना, हाथ पैर के तलवों में जलन होना इत्यादि लक्षण दिखने पर चिकित्सक मधुमेह डायबिटीज के लिए लेबोरेटरी में मूत्र परीक्षण एवं तरह-तरह के रक्त परीक्षण करवाते हैं, क्योंकि यह परीक्षण (जांच) करवाना रोगी और चिकित्सक के लिए अत्यंत जरुरी है. यह सब चिह्न मधुमेह (डायबिटीज) के ही है.
डायबिटीज विशेषज्ञ चिकित्सक को तो यह रोग मधुमेह डायबिटीज ही है, इसका अंदाज होता ही है.
किंतु यह व्याधि रक्त (Blood) में है या मूत्र (Urine) में इसकी जानकारी के लिए और रोगी की भी जानकारी के लिए यह सब करवाना अत्यंत ही जरूरी है.
रोग निश्चित होते ही इसकी चिकित्सा करवाना अत्यंत ही जरूरी है. डायबिटीज (मधुमेह) कभी भी न मिटने वाला रोग है. आज की औषधियां इसको काबू में रख सकती है, लेकिन नष्ट नहीं कर सकती. इस अवस्था को आयुर्वेद में याप्य नाम दिया है. याप्य यानी के औषधियां जीवन पर्याप्त खाते रहो और रोग को काबू में रखो.
एलोपैथ विज्ञान ने चेचक, राजयक्ष्मा (T.B) काली खांसी (whooping Cough) कंठ रोहिणी (Dyptheria) और पोलियो जैसे कई संक्रामक रोगों पर काबू पाकर नष्ट करने में सहायता की है, किंतु डायबिटीज मधुमेह अब तक कोई लाभदायक परिणाम नहीं मिले हैं. उनके संशोधनात्मक प्रयास जारी है. हम भगवान से प्रार्थना करे कि वह शीघ्राति शीघ्र सफलता प्राप्त करें और यह जानलेवा और असाध्य व्याधि से मानव समाज को छुटकारा दिलाए और आशीर्वाद ले.
Read This Also – डायबिटीज़ के लक्षण Symptoms Of Diabetes
डायबिटीज मधुमेह का रोगी मन में संकल्प करें कि उसका शरीर अपने कुटुंबकी धरोहर है और अपने माता-पिता पत्नी बाल बच्चे और परिवार को इस शरीर की जरूरत है |
इसलिए दीर्घायु होकर सुखमय आनंद दायक जीवन जीना है और इसके लिए आहार का नियमन करना, पथ्य पालन यानी परहेज करना, नियमित व्यायाम करना और चिकित्सक के परामर्शनुसार औषध उपचार करना अत्यंत ही जरूरी है. यह सब करने से सरलता से रोग काबू में रहेगा लंबी दीर्घायु प्राप्त होगी और सुखमय आनंददायक जीवन बनेगा. आपका हर दिन हंसी हंसी गुजरेगा.
एलोपैथी विज्ञान में डायबिटीज मेलीटस (Diabetes Melletus) के जिस में शहद या गन्ने का रस जैसा मूत्र होता है और डायबिटीज इन्सीपीडस (Diabetes Insipidus) इसमें मूल प्रवृत्ति अति मात्रा में होती है और अंत में बच्चों को होने वाले डायबिटीज ज्युवेनाईल (Jovenile Diabetes) नामक मधुप्रमेह इस प्रकार तीन डायबिटीज के विषय में वर्णन है. इसमें तरह तरह के इंसुलिन इंजेक्शन और ग्लीबंकलामाईड (Culibenclawide) मेटफोरमिन (Metaformin) इत्यादि टेबलेट्स देकर रोग को काबू में रखने का प्रयास किया जाता है.
यह आप सबकी जानकारी के लिए बताया है. इस विषय में विशेष डायबिटीज के विशेषज्ञ ही बता सकते हैं.
महर्षि चरक कहते है कि…
“आस्यासुखम् स्वप्नसुखम् दघीनि ग्राम्यौदकानूं परसाः पयांसि.
नवान्नपानम् गुडवैकृतम् च प्रमेह हेतुः कफकृच्च सर्वम् .. (च.चि.अ. 7) ..
यानी के “जो लोग बैठे-बैठे रहकर अत्यंत ऐशोआराम से सुख प्राप्ति करते हैं, अति सोते हैं, दूध दही का सेवन ज्यादा करते हैं. जलचर (मछली इत्यादि) और ग्राम चर (बकरी इत्यादि) मांस का अति सेवन करते हैं. नया अनाज, नया जलपान का अति सेवन करते हैं. गुड़ से बने मीठे व्यंजनों का तथा कफ वर्धक आहार का अति सेवन करने से प्रमेह की उत्पत्ति होती है.
मधुमेह में अति ज्यादा मात्रा में पेशाब होता है. पेशाब वाली जगह पर दाग धब्बे हो जाते हैं और उस जगह पर कीड़े मकोड़े और मक्खियां बैठी होती है. मधुमेह रोग में वातम, पित्त, कफ के प्रकुपित होने से यकृत तथा तिल्ली विकृत होते हैं और जठराग्नि मंद होती है. जिसमें हाजमा पाचन क्रिया बिगड़ती है और इसी वजह से शर्करा का पाचन ठीक तरह से नहीं होने से शर्करा का संचय होता है और यही शर्करा रक्त में अतिमात्रा में देखने को मिलती है.
यदि Blood Sugar है, दोनों वृक्क (Kidney) भी रक्त शुद्धि के वक्त मूत्र मार्ग से शर्करा को बाहर निकालते हैं. यह (Urine Sugar) है. इसमें मक्खियां कीड़े मकौड़े घूमते नजर आते हैं. लेबोरेटरी में ब्लड और यूरिन की जांच करवाने से ज्यादा जानकारी होती है. रोग का पता चलता है.
मधुमेह यह याप्य रोग है. व्यायाम, नियमित औषधि सेवन और उचित भोजन करने से ही यह काबू में रहता है अन्यथा श्वास चढ़ना, कम दिखना, कम सुनाई देना, कमजोरी और काम शक्ति (Sex Power) का ह्रास होता है. रोग की तीव्रता बढ़ने से पेट, पीठ, मांसल भाग और शरीर कि संधियो के पास मर्मों के पास फोड़े (Abscess) होते हैं . इसके अलावा त्वचा रोग, पैर के तलवे फटना, और झामर (आँख के रोग का नाम) इत्यादि रोग होते है.
Read This Also – मधुमेह से बचाव के घरेलू उपाय
(यह अग्न्याशय पेनक्रियास का स्थान होजरी के नीचे है) इसके उपरांत अति मोटे मेदस्वी तथा शराबी और दिमागी मानसिक काम करने वालो को मधुमेह होने की संभावना ज्यादा होती है. मधुमेह होने से पहले की प्रक्रिया ‘प्रमेह’ होने की है. प्रमेह के विषय में जानना अत्यंत जरुरी है. क्योंकि आयुर्वेद में बीस प्रकार के प्रमेहो का जिक्र है. दस प्रमेह कफ के, छह प्रमेह पित्त के और चार प्रमेह वायु के मिलाकर बीस प्रकार के प्रमेह होते है.
कफ के दस प्रमेह :-
- इक्षुमेह :- इक्षु यानी के गन्ने के रस जैसा मूत्र होना.
- सांद्रमेह :- बासी मूत्र जाम जाता है.
- उदक मेह :– इसमें मूत्र प्रवृत्ति ज्यादा, श्वेत रंग की, स्पर्श में शीतल दुर्गंध विटामिन थोड़ी सी मैली पानी जैसी और थोड़ी मात्रा में चिकनाहट युक्त होती है.
- सुरामेह :- सुरा शराब जैसा मूत्र पात्र में रखने से ऊपर से स्वच्छ और नीचे मलिन होता है.
- पिष्टमेह :- भिगोये हुए आटे जैसा मोटा और सफ़ेद रंग का मूत्र होता है.
- शूक्रमेह :- शूक्र यानी कि वीर्य मिश्रित और वीर्य जैसा मूत्र आता है.
- सिक्तामेह :- इसमें छोटे बालू के कठिन रजकण अल्प प्रमाण में देखने को मिलते है. (बालू यानी रेत)
- शीतमेह :- अत्यंत शीतल और मधुर मूत्र प्रचुर मात्रा में होता है.
- शनैमेह :- इसमें धीरे धीरे और थोड़ा थोड़ा मूत्र आता है.
- लालामेह :- तंतु युक्त लाला जैसा और दिखाव में चिकना मूत्र आता है.
पित्त के छह प्रमेह :-
- क्षारमेह :- स्पर्श गंध वर्ण और इसमें क्षार जैसा मूत्र आता है.
- नीलमेह :- आसमानी रंग का मूत्र आता है.
- कालमेह :- काले शाही जैसा मूत्र आता है.
- हरिद्रामेह :- हल्दी के रंग जैसा स्वाद में तीखा और दाह के साथ (urinary Burning) मूत्र आता है.
- गंजिष्ट मेह :- मजिठ के काढ़े जैसा और दुर्गंध युक्त मूत्र आता है.
- रक्तमेह :- रक्त वर्ण अति गरम अति खारा और दुर्गंध युक्त मूत्र आता है.
वायु के चार प्रमेह :-
- वसामेह :- वसा यानी चर्बी (Fat) जैसा मूत्र बार-बार आता है.
- मज्जामेह :- मज्जा मिश्रित और मज्जा के रंग जैसा मूत्र आता है.
- क्षौद्रमेह :- कसैला मधुर और रूक्ष मूत्र आता है.
- हस्तिमेह :- मदोन्मत हाथी की तरह वेग रहित, तूटक तूटक अटकती धार से सतत निरंतर मूत्र आता है. इस मूत्र में लसिका यानी कि लाल और थूक जैसे पदार्थ मिश्रित होते है.
आज के जमाने में यह सब प्रमेहों का वर्गीकरण करना आसान नहीं है. इन प्रमेहों की समयानुसर चिकित्सा नहीं करवाने से ही ‘मधुमेह’ यानी कि डायबिटीज़ रोग होता है. अब हम चिकित्सा देखते है. चिंता भय शोक को छोड़कर ऋतुचर्या का पालन करते हुए पथ्य सहित उपचार करने से आराम होता है.
मधुमेह होने पर क्या – क्या खाना चाहिए
पुराना अनाज जैसे कि जौ, गेहूं, चना, मटर, मूंग, मंथ, मसूर, अरहर, कुलथी, चावल और कांदो ले सकते हैं. परवल, बैंगन, करेला, लौकी, कंकोडा, कच्चा केला, ककड़ी, गिलोडा, सहजन की फली और फूल, मेथी की भाजी, मूली इत्यादि के साथ ले सकते हैं. जामुन, आम, आंवला, अनानास, अनार, खरबूजा, द्राक्ष जैसे फल भी चिकित्सक के परामर्शनुसार ले सकते हैं. हल्दी, धनिया, जीरा, हींग, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, अजवायन, इलायची, प्याज, लहसुन, अदरक, सौंठ, पुदीना, कबाव चीनी इत्यादि ले सकते हैं. लाल मिर्च और हरी मिर्च अल्प मात्रा में ले सकते हैं. भोजन में समुद्री लवण (Sea Salt) के बदले में सेंधा नमक ही हमेशा के लिए इस्तेमाल करो.
मधुमेह होने पर क्या नहीं खाना चाहिए
शक्कर, गुड, दही, इमली, बासी और ठंडा भोजन, फास्ट फूड, बैकरी की चीजें और अति भुना अति तला हुआ खुराक, मांसाहार, अंडे, रंग वाले, असेंस और फूलेवर वाले ,चांदी, सोने के वरख लगाए हुए आहार भी हानिकारक है. दिन में सोना और अति मैथुन वज्य्र है.
दिनचर्या कैसी रखें
प्रातः काल में उठकर खुली हवा में अपनी क्षमतानुसार 2 से 4 कि.मी. चलने की आदत डालो. अनुलोम विलोम कपालभांति आदि प्राणायाम करो. शाम का भोजन साथ बजे से पहले करो. भोजन के पश्चात 4 से 10 मिनट वज्रासन में बैठो. शरीर की सफाई का ध्यान रखो. हाथ पैर की उंगलियों की सफाई ठीक से करो. सही नाप के जूते चप्पल पहनो. सूती मोजे पहनो.
डायबिटीज का उपचार
सामान्यतया देखने में आता है कि डायबिटीज वाले कई तरह के नुस्खे अखबार में पढ़कर या किसी से सुनकर करते हैं. कड़वे करेले का चूर्ण बनाकर फंकी मारना सही नहीं है. कभी जानलेवा स्थिति हो जाती है. चिकित्सक के परामर्शनुसार ही अपनी दवाइयां सेवन करो. यहां कुछ नुस्खे बता रहा हूं. इसमें परामर्श की आवश्यकता नहीं है.
- सदाबहार के या बिलिके चार पाँच पत्ते सुबह और रात को चबा कर ले सकते हैं.
- 1-2 ग्राम शुद्ध शिलाजीत गाय या बकरी के दूध के साथ लेने से ताकत बनी रहेगी.
- हल्दी और आंवला बराबर मात्रा में लेकर पाँच से ग्राम दस ग्राम सुबह शाम पानी के साथ लें.
- गेंदे के फूल, पान का स्वरस, शहद पानी में मिलाकर पीने से मधुमेह, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, नेत्र सेग तथा अर्थ में 2-2 चम्मच पीने से आराम होता है.
शास्त्रोक्त औषधियां बहुत सारी है, जिनके सिर्फ नाम बता रहा हूं. जैसे की चंद्रप्रभा वटी, शिलाजत्वादि वटी, मधुमेहारी रस, वसंत कुसुमाकर रस, आरोग्य वर्धिनी विजयसार वनवटी बंगभस्म त्रिलंग भस्म और लोध्रासब आदि सैकड़ों योग है. इन योगों को आपके चिकित्सक ही दे सकते हैं | अंत में दो सरल प्रयोग यहाँ बता रहा हूं, स्वयम् बनाकर प्रयोग करें.
- शुद्ध गंधक 12 ग्राम, 24 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से बीसों प्रकार के प्रमेह और प्रमेह के उपद्रव रूप प्रमेह पीडिकायेँ भी मिटती है.
गंधकम् गुडसयुंक्तक्तम् कर्षम भूत्वा पयः पिवेत्.
विशंतिस्तेन वश्यंति प्रमेहाः पिडका अपि”.. (निधुंट रत्नाकर प्रमेह प्रकरण)
- फिटकरी के चूर्ण को नारियल में छेद करके भरकर बराबर बंद करें और एक रात के लिए कीचड़ के गड्ढे गाड़ दे. दूसरे दिन सवेरे उसे निकालकर पानी के साथ पीसकर चटनी बनाकर पीने से सेवन करने से वर्षो पुराना यह रोग निश्चय पूर्वक मिटता है.
“स्फाटिंक चूर्णमादाय नारिकेलोदरे क्षिपेत्.
तत्फलं पडक्मध्ये तु स्थापयेदेक रात्रकम्..
प्रातः शनीय सजलं चूर्ण पेयम् प्रयत्नतः .
अनेन चिरकालीनो मेहो नश्यति निश्चिततम्..”
उपरोक्त दोनों प्रयोग सरल और शास्त्रोक्त होते हुए सस्ते भी हैं. इस विषय में भारत सरकार के ‘आयुष’ (Ayush) विभाग को ध्यान देना चाहिए.
Mr sir
Acidity and kamjori liver problem
Skin pet me get banata kam me man nahi lagata
Khana nahi hajma
Mr sir
Acidity and kamjori liver problem
Skin pet me get banata kam me man nahi lagata