
आइये जाने कि प्रेगनेंसी में क्या खाना चाहिए – गर्भावस्था में पौष्टिक भोजन Garbhavastha Me Kya Khana Chahiye Hindi Me.
महिला जीवन निश्चय ही त्याग और पग-पग पर पीड़ा एवं परीक्षा का जीवन है. चाहे हो शादी से पहले या शादी के बाद या हो प्रौढ़ावस्था! हर कदम पर संबंधित समस्याओं से जूझना पड़ता है.
अगर यूं कहे कि मासिक धर्म आरंभ (Menarche) से मासिक धर्म बंद (Menopause) तक, यानी साधारणतया 32 वर्ष (13 से 45 वर्ष) तक प्रत्येक अवस्था अपनी अपनी समस्याओं से भरी है.
प्रारंभिक अवस्था में कई बार मासिक धर्म विलंब से (Delayed Menses) या अनियमित मासिक धर्म यानी (irregular menstruation) यानी पीड़ादायक मासिक, यानी ऋतुशूल (Dysmenorrhoea) या दो मासिक धर्म के बीच रक्त स्त्राव यानी (Menorrhagia) या मासिक धर्म रुक जाना (Amenorrhea) या श्वेत प्रदर (Leucorrhoea) या मासिक स्त्राव (Menorrhagia) अधिक होना या कम होना (Scanty Menstruation), कामोन्माद (Nymphomania), बांझपन (Sterility), गर्भाशय व डिम्बग्रंथियो के रोग, गर्भावस्था के दौरान तकलीफें, गर्भपात संबंधी तकलफें और अंततः रजोनिवृत्ति (Menopause) और उससे संबंधित तकलीफें या कमियां जो बाद में जीवन पर्यन्त शारीरिक दर्दों एवं (osteoarthritis) के रूप में सताती हैं.
निसंदेह महिला जीवन की प्रत्येक अवस्था विभिन्न कष्टों से भरी है. प्रकृति की इस रचना, यानी महिला जीवन पर ध्यान दें, तो महिला वास्तव में स्नेह व सम्मान की हकदार हैं और सामाजिक पारिवारिक ताड़ना, प्रताड़ना या उत्पीड़न निश्चय ही महिलाओं के साथ भारी अन्याय है.
पता नहीं क्यों इंसानो ने भी सदियों से महिला जीवन के कष्टों को देखते और जानते हुए भी उनको संभालने की जगह आंखें मूंदे रखी हैं और विभिन्न रिश्तो यानी सास-बहू, ननंद-भौजाई, देवरानी-जेठानी की दुहाई स्त्री को स्त्री की बैरन बनाए रखा! कर्कश और कड़वाहट चलती रही, महिला जीवन कष्ट पूर्ण होता चला गया.
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जग को चलाने वाली, दूध पिलाने वाली त्याग की मूर्ति मां, बहन का दुलार, पत्नी का त्याग और मां का स्नेह देने वाली प्रकृति की अनमोल रचना यानी महिला समाज में अपना सही स्थान न पा सकी. अगर कुछ स्वार्थी तत्वों ने दिलाया तो महिला स्वतन्त्रता के नाम पर महिला जीवन की उलझने और बैर बढ़ा दिए.
व्यर्थ की बहस, लड़ाई झगड़ा, कलह, क्लेश के बीज बो दिए, विनम्र और स्नेह से पूर्ण आवाज को कर्कश एवं कड़वी बना दिया! परिवारों में आपसी प्यार, विश्वास, आदर और अनुशासन को कलहपूर्ण बना दिया. जीवन में रस, प्यार और मधुरता का हनन करके महिलाओं को शारीरिक कष्टों के साथ भयानक मानसिक संतापों में उलझा दिया.
न्यूट्रीटिव फूड हर आयु वर्ग की आवश्यकता है. परंतु गर्भ के दौरान गर्भवती महिला की स्वास्थ्य रक्षा तथा पौष्टिकता की आवश्यकता विशेष जरुरी है. ताकि नए पैदा होने वाला बच्चा, स्वस्थ एवं रोग मुक्त हो.
मानव शरीर को ठीक रखने के लिए पौष्टिक भोजन बहुत आवश्यक है.
पौष्टिक भोजन के सात मुख्य तत्व है-
- प्रोटीन,
- खनिज,
- चिकनाई,(Fats Lipids)
- निशास्ता यानी कार्बोहाइड्रेट्स,
- विटामिन,
- पानी
- फाइबर
प्रोटीन और खनिज शरीर को बनाने में चिकनाई और कार्बोहाइड्रेट्स कर्मी यानि एनर्जी देने में, विटामिन और खनिज रक्षक तथा पानी और फाइबर शरीर की क्रिया का संचालन करने में योगदान करते हैं.
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महिलाओं में, गर्भावस्था विशेष सावधानी एवं पोषण मांगती है. ताकि आने वाला शरीर स्वस्थ एवं सुंदर हो. जरा सी भी लापरवाही, पोषण और खान-पान में गर्भस्थ बच्चे को हानि पहुंचा सकती है | क्योंकि गर्भवती का आहार विहार गर्भस्थ शिशु पर सीधा प्रभाव डालता है. पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार की आवश्यकता होती है.
गर्भावस्था के अंतिम महीनों में, साधारणतया शरीर को 300 कैलोरी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं. इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए उच्च ऊर्जा वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध, नट्स, सूखे मेवे और सोया उत्पादों पर ध्यान देता है.
गर्भावस्था के दौरान आहार में 15 ग्राम प्रोटीन की अतिरिक्त मात्रा अपेक्षित है. यह अधिक मात्रा गर्भस्थ शिशु के तेजी से विकास, गर्भनाल, स्तन ग्रंथियों व गर्भाशय के विस्तार, एमनियोटिक फ्ल्यूड के निर्माण व भंडारण सहज प्रसव और मां के दूध निर्माण एवं गर्भस्थ शिशु तक मां के जरिए एमिनो एसिड पहुंचाने के लिए भी जरूरी है. दूध, मांस, अंडा और पनीर आदि प्रोटीन के स्त्रोत है. चावल, दाल, हरी सब्जियां, मछली भी गर्भवती को देनी चाहिए.
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सबसे जरूरी अंशों में शामिल है आयरन और कैल्शियम. गर्भवती के भोजन में प्रतिदिन 38 ग्राम आयरन चाहिए. जन्म के समय शिशु का साधारणतया हीमोग्लोबिन स्तर 18-22 मिली/डीएल रहता है. शिशु और गर्भनाल के विकास के लिए आयरन बहुत जरूरी है. हरी सब्जियों, अंडा, दालें और लौहयुक्त नमक इसके अच्छे स्त्रोत है.
गर्भस्थ शिशु की हड्डियों एवं दांतों के लिए कैल्शियम की बहुत आवश्यकता होती है.गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में कैल्शियम मात्र 25-30 ग्राम मात्रा शिशु तक पहुंचती है. दूध, दही, मट्ठा में उच्च मात्र में कैल्शियम के अतिरिक्त विटामिन बी 12 भी पाया जाता है.
गर्भवती महिला को पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड का सेवन करना चाहिए, ताकि गर्भावस्था के दौरान बच्चे को इसकी कमी से होने वाले संभावित विकार जैसे मेक्रोसाइटिक एनीमिया तथा मस्तिष्क और रीढ़ के विकास में बांधा न पहुंचे. ब्रोकली, पालक, केला और अनाज इसके अच्छे स्त्रोत हैं.
घी, मक्खन और नारियल तेल में संतृप्त वसा काफी मात्रा में होते हैं. वनस्पति घी में टांसफैट की मात्रा अधिक होती है. ये दोनों हानिकारक है. चिकनाई का काम चर्बी और ताकत तथा शरीर में आवश्यक चर्बी और चिकनाई पैदा करता है. घी, मक्खन, तेल, वनस्पति घी और चर्बी पाँच तरह की चिकनाई है. इनमें मक्खन उत्तम प्रकार की चिकनाई और चर्बी सबसे बुरी चिकनाई है जो कि शरीर की गर्मी से पिघलती नहीं और इसे पचाना शारीरिक मशीन के लिए मुश्किल हैं.
गर्भवती को अंडे की जर्दी, माखन, गहरे हरे और पीले रंग की सब्जियों और फलों से विटामिन A प्राप्त होता है. मां के शरीर में कैल्शियम को भली प्रकार जज्ब करवाने के लिए विटामिन डी लेना बहुत जरुरी है. सूरज की किरणों से विटामिन डी मिलता है, जो शरीर को दूध एवं दालों से मिलने वाले कैल्शियम को भली प्रकार ग्रहण करने में सहायक हैं.
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आहार में सोडियम की कमी से हार्मोन संबंधी बदलाव उत्पन्न हो सकते हैं. गर्भावस्था के दौरान ऐसी औषधियों से बचे जिनसे बार बार पाखाना जाना पड़े क्योंकि ऐसे शरीर से जरूरी सोडियम भी निकल जाता है.
गर्भावस्था दौरान कभी खट्टा, कभी मीठा, चॉकलेट, स्पाइसी फूड, आइसक्रीम, पिज्जा से लेकर उबले आलू और सैंडविच को देखकर गर्भवती महिला के मुंह में पानी आ जाता है. कई महिलाएं तो मिट्टी खाने के लिए उतावली रहती है. कुछ खास खाने को मचलना हार्मोनल Changes कारण हो सकता है, जिससे स्वाद और सुगंध (Taste & Smell) प्रभावित होते हैं.
इससे या तो कुछ खाने को मन मचलता है या मितलाता है. गर्भावस्था में स्वादिष्ट चीजें खाना कोई बुरी बात नहीं परंतु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीजों से परहेज करना ही ठीक है ताकि गर्भवती स्त्री और गर्भस्थ शिशु ठीक रहे.
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उपरोक्त कुछ बातों को ध्यान में रखते हुए संतुलित आहार ले तो गर्भवती और गर्भस्थ शिशु सही रहते हैं. और गर्भावस्था तथा बच्चे के जन्म में किसी तरह की परेशानी या पीड़ा की संभावना काफी कम हो जाती है.
स्त्री रोगों की अन्य अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन अगले अंको में करेंगे क्योंकि औषधि द्वारा स्त्री रोगों का इलाज करने में होम्योपैथिक औषधि अन्य चिकित्सा पद्धतियों से बहुत प्रभावकारी और सुरक्षित है. बशर्ते कि निदान सही हो और चिकित्सक अनुभवी, उच्च शिक्षित एवं सेवा भाव से पूर्ण नेक नियत हो.
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