
आयुर्वेद में वर्णित लगभग बीस हजार के प्रमेहों में सबसे अधिक व्यापक और भयंकर रोग मधुमेह है. आज का मानव विशेष रूप से मिथ्या आहार एवं विहार के कारण इस रोग से ग्रस्त होता जा रहा है. यह रोग दीर्घकाल तक मनुष्य को पीड़ित करता है एवं घुला-घुला कर मारता है.
भारत में ही नहीं अपितु सारे संसार में यह व्याधि बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है. कुछ समय पूर्व इस रोग को अमीरी निशानी माना जाता था, परंतु आज गरीब तबका भी इस रोग का शिकार होता जा रहा है. आज के युग में यह बीमारी है फैशन की तरह फैलती जा रही है.
‘डायबिटीज सेल्फ केयर फाउंडेशन‘ का कहना है कि एक ओर तो लोगों के खान पान की आदतों में तेजी से बदलाव आ रहा है, दूसरी और रोजगार व रहन-सहन ऐसा होता जा रहा है, कि मनुष्य आराम तलब ज्यादा हो रहा है. यही कारण है कि मधुमेह को लेकर हालात बेकाबू होते जा रहे हैं. इस बीमारी की चपेट में आने की संभावना प्रत्येक व्यक्ति को है, जो श्रमजीवी नहीं है, आराम की जिंदगी जीता है, खूब खाता पीता है.
मधुमेह का प्रधान लक्षण है
1. बहुमूत्रता
इसके रोगी के मूत्र के साथ शरीर गत शर्करा भी निकलती है. अतः मित्र पर मक्खी व चींटी बैठता है. जमीन पर मूत्र का धब्बा भी बनता है. दोषो के विकृत होने पर यकृत की विकृति से यह रोग पैदा होता है.
परिणामस्वरूप शरीरगत शर्करा पाचन क्रिया में सहायक न होकर एक अस्वाभाविक रूप से संचित होने लगती है और फिर यह शर्करा रक्त में अधिक मात्रा में जा मिलती है.
इस रोग के प्रति जागरुक रहना अति आवश्यक है क्योंकि यह रोग धीरे धीरे पैदा होता है और बहुत समय तक अपने आप को प्रकट नहीं करता, रोगी का ध्यान बहुत समय तक इसकी ओर जा ही नहीं पाता क्योंकि रोगी को शुरू शुरू में सामान्य सी दुर्बलता महसूस होती है, जिसे वह टाल जाता है.
सामान्यतः जैसे ही निम्न लक्षण दिखाई दे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए तथा रक्त एवं मूत्र परीक्षण करवा लेना चाहिए.
लक्षण :- अधिक भूख प्यास, ज्यादा पेशाब आना, थकावट, अचानक वजन कम होना, जख्म का देरी से भरना, हिचकी आना, पैरों हाथों में झनझनाहट होना, अनिद्रा से तनाव, तलुओ में जलन, चिड़चिड़ापन, नेत्र ज्योति लगातार कम होते जाना, सिर में भारीपन रहना, यदि ये सभी या कम लक्षण है, तो व्यक्ति डायबिटिक हो सकता है. मधुमेह से कई गंभीर आंतरिक व्याधियां भी पैदा हो सकती है, जैसे गुर्दा खराब होना, अंधापन, हार्ट अटैक आदि.
निवारण :- मधुमेह की बीमारी में सर्वाधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि इस को नियंत्रित या नष्ट करने में पथ्य अपथ्य का पालन करना औषधि सेवन की अपेक्षा अधिक हितकर है. बिना पथ्य अपथ्य के सेवन से इस बीमारी से छुटकारा पाना बहुत ही मुश्किल है. मधुमेह ऐसा रोग है, जिसके लिए अनियमित आहार विहार ही उत्तरदायी हैं. इसके नियंत्रण का सबसे सरल और सुरक्षित उपाय है, नियंत्रित आहार विहार.
मधुमेह :- संक्रमण से होने वाला संक्रामक रोग नहीं है परंतु वंशानुगत प्रभाव से हो सकता है. इसलिए जिनके परिवार में पहले किसी को मधुमेह रहा चुका हो, उन्हें बचपन से ही आहार विहार के मामले में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए.
प्रातः खाली पेट रक्त में शर्करा की मात्रा 80 से 120 mg (प्रति 100 CC. रक्त) के मध्य होने पर स्वस्थ कहा जाता है. 120 mg से 140 mg के मध्य होने पर मधुमेह की प्रारंभिक अवस्था कही जाती है तथा 140 mg से अधिक होने पर समझ ले कि मधुमेह ने शरीर पर कब्जा कर लिया है. भोजन करने के दो घंटे बाद की गई जांच में रक्त शर्करा 120 mg से कम होने पर मनुष्य स्वस्थ 140 mg तक प्रारंभिक अवस्था तथा 140 mg से अधिक होने पर इस रोग से ग्रस्त माना जाएगा. 40 वर्ष से अधिक आयु वाले मनुष्य (स्त्री पुरुष) को वर्ष में एक दो बार रक्त शर्करा की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए.
दिनचर्या एवं पथ्य अपथ्य
मधुमेह के रोगी को सारे दिन में कम से कम 4-5 कि.मी. तक पैदल भ्रमण अवश्य करना चाहिए. सूर्योदय से पहले प्रातः भ्रमण, तेल मालिश, योगासन, सूर्य नमस्कार, व्यायाम एवं कुछ आसन अवश्य करने चाहिए.
रक्त में शर्करा का पता चलने पर चिंतित एवं भयभीत नहीं होना चाहिए. बल्कि इस समस्या का उचित समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए.
मधुमेह के रोगी को कच्चे टमाटर, तीनों प्रकार की गोभी, पत्तों की भाजी, सेम की फली, करेले का सेवन नियमित करना चाहिए.
तले-भुने पदार्थ आलू, पके टमाटर, भिंडी, गाजर, चुकंदर, काशीफल, कच्चा केला तथा अरहर की दाल का सर्वथा त्याग करना चाहिए. सुबह प्रातः भ्रमण करने के बाद घर में जमा हुआ दही इच्छानुसार थोड़ा पानी, जीरा व काला नमक डाल कर देना चाहिए.
नाश्ते में फाइबर वाले पदार्थ, रात में भिगोया हुआ अनाज लेना चाहिए. खाने में जौ चने की रोटी फाइबर वाले पदार्थ, रात में भिगोया हुआ अनाज लेना चाहिए. खाने में जौ चने की रोटी का सेवन करना चाहिए.
भोजन फुर्सत के हिसाब से नहीं बल्कि निश्चित समय पर करना चाहिए. रोगी को मीठे पदार्थ, चीनी, चावल, आलू, शकरकंद, तले भुने पदार्थ, घी, मक्खन, सूखे मेवे का भी परहेज करना चाहिए. मांसाहार व शराब का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए. रेशायुक्त पदार्थ जैसे हरी शाक सब्जी, सलाद, आटे का चोकर, मौसमी फल, अंकुरित अन्न, दाल आदि का प्रयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए.
घरेलू उपाय एवं चिकित्सा Madhumeh Hone Ka Karan Aur Upchar
- मेथी दाने का चूर्ण नियमित 1 चम्मच सुबह खाली पेट पानी से लें.
- 1/2 चम्मच पिसी हल्दी व 1 चम्मच आंवला चूर्ण सुबह-शाम पानी से ले. रक्त शर्करा सामान्य होगी.
- गुडमार 20 बिनोले की मांगी 40 gm. बेल के सूखे पत्ते 60gm. जामुन की गुठली 40 gm. नीम की सुखी पत्ती 20 gm. सबको कूट-पीसकर चूर्ण बना लें. सुबह शाम आधा आधा चम्मच चूर्ण पानी से लें. इसे अग्न्याशय व यकृत को बल मिलने के कारण उनके विकार नष्ट होते हैं तथा रक्त व मूत्र की शर्करा नियंत्रित रहती है.
- आयुर्वेदिक औषधि वसंत कुसुमाकर रस और प्रमेह गज केसरी वटी 1-1 गोली सुबह शाम फीके दूध से लें.
- तेजपात का चूर्ण दिन में तीन बार सुबह दोपहर शाम चम्मच ½ – ½ चम्मच पानी या दूध से ले. यह अनुभूत योग है.
आयुर्वेदिक योग :- अपने चिकित्सक काल में जिस योग का प्रयोग मैं रोगियों पर करता हूं और जो बहुत ही सफल योग सिद्ध हुआ है वह निम्न प्रकार है. इस योग के प्रयोग से बहुत से रोगी एलोपैथिक दवा का सेवन बंद कर चुके हैं, काफी रोगी इस योग का प्रयोग भी कभी कभी ही करके अपनी शुगर को परहेज से ही कंट्रोल में रखते हैं.
घटक द्रव्य :- नीम बेल तुलसी के सूखे पत्ते 50-50 gm मेथी दाना, करेले के बीज, जामुन की गुठली, गुडमार, आंवला, विजयसार, गिलोय व अजवायन इन आठों का चूर्ण 50-50 gm सौंफ, चिरायता, अंबा, हल्दी, कुटकी, सोंठ गोखरू व काला जीरा 25-25 gm व त्रिवंग भस्म 25 gm सबको कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें. सुबह नाश्ते से पहले व रात भोजन से पहले 1-1 चम्मच छोटा (लगभग 3 gm) पानी से लें. इसी के साथ शिला प्रमेह वटी (व्यास कं.) तथा मधुनाशिनी वटी (पंतजली) 1-1 गोली भी ले.
हर हफ्ते शुगर चेक करते रहे, सामान्य रहने लगे तो धीरे धीरे एलोपैथिक दवा काम करते जाए. एलोपैथिक दवा छोड़ने के कुछ समय बाद भी जब शुगर सामान्य रहने लगे तो इस योग को भी कभी-कभी प्रयोग करें तथा परहेज से ही शुगर को सामान्य रखें.
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