
प्रेगनेंसी से पहले की तैयारी – Pregnancy Ki Taiyari – Garbhavastha Ke Dauran Savdhaniya – शादी के कुछ समय बाद नन्हें कदमों की आहट सुनने की ख्वाहिश पति पत्नी के मन में घर कर ही जाती है. कभी-कभी बिना किसी पूर्व तैयारी के बच्चे के आगमन का संदेश आ जाता है. लेकिन जब पति पत्नी दोनों पूरी तैयारी के साथ अपने नन्हे-मुन्ने को अपनी दुनिया का हिस्सा बनाते हैं, तो उस का आनंद ही कुछ और होता है.
बच्चे के आगमन के लिए पूर्व मानसिक आर्थिक तथा भावनात्मक रूप से तैयार होना बहुत जरूरी है, क्योंकि आज की एकल परिवारों में बच्चों के पालने, पढ़ाने और बड़ा करने की सारी जिम्मेदारी माता-पिता की ही होती है. यदि माता-पिता इन जिम्मेदारियों को उठाने के लिए मानसिक और आर्थिक रूप से तैयार होते हैं, तो बच्चे का आना उन्हें भारी नहीं लगता. आज-कल वैसे भी माता-पिता अनचाहे गर्भ के प्रति काफी सतर्क हो गए हैं. शादी के 1-2 साल बाद एक दूसरे को अच्छी तरह समझ कर मानसिक और आर्थिक रूप से अपने को तैयार करके ही बच्चे के बारे में सोचे तो अच्छा रहेगा.
पति – पत्नी शिशु की जिम्मेदारी बांटे Husband And Wife Share Responsibility
यदि आप दोनों कामकाजी हैं, तो पहले ही तय कर लें कि जन्म के बाद बच्चे की देखरेख कौन करेगा. घर के किसी बुजुर्ग की सहायता लेनी है, नौकरी छोड़नी है या लंबी छुट्टी लेनी है. नौकरी छोड़ने का फैसला लिया है, तो खुद को मानसिक रुप से इसके लिए तैयार कर ले. इसको लेकर पछतावा या अपराधबोध पालने की कोई जरूरत नहीं है. बच्चे पति-पत्नी की साझा जिम्मेदारी होते हैं, इसलिए मिल जुलकर बच्चे के सभी काम बाँट लें. वैसे शिशु की देखभाल, उसके छोटे-छोटे काम करने, जैसे नैपकीन बदलने, गोद में लेकर बहलाने-सुलाने में पिता को भी आंतरिक खुशी महसूस होती है, साथ ही पत्नी का काम भी बंटजाता है.
शिशु से संबंधित किताबें पढ़ें Read Books Related To Baby And Pregnancy
गर्भावस्था के दौरान, मातृत्व से संबंधित किताबें पति-पत्नी दोनों को पढ़नी चाहिए. इससे जहां होने वाली मां को शिशु के विकास और शरीर में होने वाले परिवर्तनों का पता रहता है, वही पिता को भी अपनी गर्भवती पत्नी की पल-पल बदलती शारीरिक, मानसिक हालात और भावी शिशु के विषय में पूरी जानकारी पा जाता है.
गर्भवती पत्नी का ध्यान रखें Take Care Of Your Pregnant Wife
गर्भवती पत्नी का पूरा ख्याल रखना पति का बहुत बड़ा दायित्व है. शिशु के आगमन में पति-पत्नी दोनों बराबर की भागीदार होते हैं और यह उनकी साझा खुशी भी होती है. पति अपनी पत्नी की शारीरिक स्थिति में तो कुछ नहीं कर सकता है, लेकिन भावनात्मक तौर पर उसका सहारा अवश्य बन सकता है. शाम को पत्नी के साथ टहलने जाना, हल्का-फुल्का व्यायाम करना, इन छोटी-छोटी बातों से वह अपनी पत्नी का मन जीत सकता है. मां खुश है तो बच्चे पर भी इसका सकारात्मक असर होगा.
डॉक्टर के पास साथ जाए Visit Together To The Doctor
गर्भधारण करते ही पत्नी को डॉक्टर के पास ले जाएं. नियमित अंतराल पर होने वाली हर विजिट पर पत्नी के साथ रहें. अल्ट्रासाउंड के जरिए गर्भ में स्थित शिशु को देखने का अनुभव अपने आप में काफी दिलचस्प होता है. इससे पिता का शिशु के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है. डॉक्टर से मिलते रहने से पति को अपनी पत्नी की शारीरिक स्थिति का पूरा ज्ञान रहता है, जिससे वह पत्नी के आराम का तो पूरा ध्यान रख सकता है, साथ ही प्रसव के समय की तैयारी भी पहले से ही कर सकता है. होने वाला शिशु आप दोनों का है इसलिए मिलजुलकर बच्चे को पालने का सुख भी अलग होता है.
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