
गर्भ धारण और प्रसव नारी शरीर की प्राकृतिक और स्वाभाविक क्रिया होती है । अत: इसे शारीरिक विकार या बीमारी अथवा पीड़ा दायक क्रिया नहीं मानना चाहिए । गर्भ धारण कर बच्चे, को जन्म देना नारी शरीर का प्रमुख धर्म है । उसका शरीर संतान उत्पत्ति के निमित्त ही बना होता है ।
अत: माता बनना स्त्री के लिए सबसे सुखकारी क्षण होता है । कष्ट, बीमारी तो तब होते हैं, जब स्त्री का शरीर कमजोर हो । उसे गर्भस्थ शिशु के निर्माणार्थ और अपने शरीर की उचित देखभाल के लिए संतुलित पौष्टिक भोजन, वातावरण, जलवायु व्यवहार आदि नहीं मिलता है ।
अत: इन चीजों का यदि समय से ध्यान रखा जाये तो कोई कारण नहीं कि शिशु स्वस्थ, सुन्दर न हो तथा माता की प्रसव क्रिया से बिना किसी विशेष कष्ट के स्वाभाविक रूप से न निपट जाए ।
गर्भ धारण के बाद किसी भी परहेज या एहतियात की जरूरत नहीं पड़ती । उसे सभी काम साधारण रूप से करते रहना चाहिए । मन को प्रसन्न रख, दिन-रात अच्छे विचारों को मस्तिष्क में लाना चाहिए । चिंता, जलन, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, चिड़चिड़ापन, आलस्य आदि विकारों को त्याग देना चाहिए ।
इन दिनों अपनी खुराक पर माता को ज्यादा ध्यान देना चाहिए । क्योंकि उसे अपनी सेहत को व्यवस्थित और संतुलित रखते हुए गर्भस्थ शिशुओं को भी पौष्टिक भोजन तत्व पहुंचाने है, ताकि उसकी उचित शारीरिक मानसिक बुद्धि हो सके ।
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भोजन ऐसा लेना चाहिए जिसमें सभी विटामिन्स, खनिज प्लवण, प्रोटीन, कार्बोहाइड़ेटस, वसा आदि उचित मात्रा में मौजूद हों ।
यहां हम गर्भवती माता के एक दिन की खुराक का संतुलित भोजन पदार्थ दे रहे हैं ।
- गेहूं, चावल – 400 Gram
- दालें – 150 Gram
- हरी शाक सब्जियां 300 Gram
- घी या तेल – 120 Gram
- चीनी, गुड – 85 Gram
- दूध 500 ml
- फल – 250 Gram
(मासाहारी माताएं एक अण्डा और 100-150 Gram meat हर दूसरे दिन ले सकती हैं ।)
भिन्न-भिन्न मौसमों में चने, सरसों, पालक, मेथी, बथुआ का शाक, शलजम, गाजर, मूली, टमाटर जैसी सब्जियां कच्ची सेवन करें ।
इसी प्रकार आम, अमरूद, ककड़ी, खीरा, तरबूज, संतरा, मौसमी आदि फल बराबर लेती रहें । जो भी फल सब्जी हरी हों और कच्ची खायी जा सकें, अवश्य खाएं क्योंकि आग पर गर्म करने से खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं । अत: यदि पकाएं भी तो कम ।
कब्ज पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों से जिंतना संभव हो बचें । पानी या फलों का रस जितना ले सकें, लें । पानी खूब पीएं ताकि भोजन को पचने में सहायता मिल सके और पेट ठीक रहे ।
गर्भकाल में खून की कमी Blood Deficiency During Pregnancy
गर्भकाल में विशेष रूप से खून की कमी हो जाती है । क्योंकि मां का खून बच्चे के निर्माण में काम आ जाता है । भोजन से भी शिशु पोषक तत्व खींचता रहता है, जिससे माता के शरीर में Iron, Minerals, Vitamins आदि की कमी हो जाती है । Iron, Blood के निर्माण में जरूरी होता है ।
अत: लोह तत्व की कमी दूर करने के लिए पालक, ककड़ी, प्याज, खीरा, पपीता, सन्तरा, टमाटर .आदि काफी मात्रा में लेने चाहिए । अण्डा, जिगर तथा मांस से भी लोह तत्व की कमी को दूर किया जा सकता है ।
अनाज के छिलकों में भी लोह तत्व काफी मात्रा में होता है । अत: चोकर वाले आटे की रोटी ही खाएं । डाक्टर की सलाह लेकर Iron, Minerals, Vitamins आदि की गोलियां भी ले सकती है ।
गर्भकाल में साधारण तकलीफें General Problems During Pregnancy
गर्भकाल के दौरान गर्भवती माताओं के सामने छोटी-छोटी तकलीफें आदि रहती है । ये शिकायतें स्वाभाविक होती हैं और साधारण सी देखभाल या उपचार अथवा खुराक परिवर्तन से दूर हो जाती हैं । इन शिकायतों में कुछ ये हैं-जैसे, जी मिचलाना, उल्टी होना, छाती में जलन, कब्ज, टांगों में दर्द, पिण्डलियों में ऐंठन, पेट में दर्द, पीठ-दर्द, कमजोरी आदि ।
गर्भावस्था में जी मिचलाना Giddiness During Pregnancy
गर्भवती स्त्री को केवल सुबह के दो-तीन घंटों के दौरान ही यह तकलीफ होती है । इसमें नींबू का पानी या शर्बत, कैरी (आम) का पना तथा अन्य ठण्डे पेय पदार्थ राहत पहुंचाते हैं ।
सुबह भुने चने, आलू चिप्स, बिस्कुट आदि खा लेने से यह शिकायत नहीं रहती । आमतौर से गर्भ धारण करने के समय से 2 – 3 माह तक यह शिकायत रहती है । बाद में अपने आप ठीक हो जाती है ।
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गर्भावस्था में कब्ज की शिकायत Constipation During Pregnancy
गर्भकाल के दौरान महिलाओं को अक्सर कब्ज की शिकायत हो जाती है । इसके लिए एक नींबू को एक गिलास पानी में मिलाकर ऊपर से चार चम्मच शहद मिलाकर पी लें । कब्ज की शिकायत दूर हो जायेगी । कब्ज न रहे, इसके लिए हरी सब्जियां तथा मौसम फलों का नियमित सेवन करें ।
एक बात और महिलाओं में प्रचलित है कि गर्भकाल में स्त्री जो भी वस्तु खाने की इच्छा रखे, उसे वह वस्तु अवश्य खिलानी चाहिए । उसकी इच्छा को मारना नहीं चाहिए, परन्तु यह धारणा ठीक नहीं है क्योंकि यदि अस्वास्थयकर और हानिकारक वस्तु की मांग स्त्री करती है तो ऐसी चीजें देना उचित नहीं है ।
शरीर रचना में सबसे पहले मस्तिष्क का विकास होता है, शेष शरीर का बाद में । यदि आरम्भ से ही माता को पोषक तत्व आहार के रूप में नहीं दिए गए तो आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि बच्चे के मस्तिष्क पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है । बच्चा मन्द बुद्धि का हो या तीव्र बुद्धि का यह आपके आचार-विचार और आहार पर निर्भर करता है ।
गर्भावस्था में छाती में जलन Problem of Acidity During Pregnancy
छाती में जलन पित्त बढ़ने के कारण होती है । यह तकलीफ नींबू पर काला नमक लगाकर चूसने से दूर जाती है, या फिर एक चम्मच “Milk of Magnesia” की ले लें या इसकी एक गोली खा ले तो यह तकलीफ दूर हो जाती है ।
गर्भावस्था में टांगों में सूजन Swelling In Legs
जब गर्भ 4 – 5 महीने से ऊपर का हो जाता है, उसमें भार भी बढ़ जाता है । शरीर का जलीय भाग भी नीचे की ओर उतर आता है । इस कारण टांगें और पैर भारी हो जाते हैं । ऐसे में अकसर ज्यादा देर तक खड़े रहने या खड़े-खड़े काम करने से पैरों में सूजन आ जाती है और पैर दर्द करने लगते हैं । उनमें चमक सी चलने लगती है । अक्सर महिलाओं का काम भी ऐसा ही होता है । अत : पैरों की सूजन और दर्द को कम करने के लिए लेटते या आराम करते समय दोनों पैरों को भी ऊंची जगह टिकाकर लेटे । यदि जमीन पर लेटे तो पैरों को किसी ऊंचे स्टूल या कुर्सी पर टिकाएं । इससे शरीर से पैर ऊंचे रहेंगे तो उन पर दबाव कम पड़ेगा और इस तरह सूजन कम हो जायेगी । पैरों को ठण्डे पानी की बाल्टी में पिंडलियों तक डुबोकर कुछ देर बैठें । इससे टांगों का तनाव और सूजन कम होगी और पैरों को आराम मिलेगा ।
पिंडलियों में भी ऐसे समय ऐंठन होती है । मांसपेशियों में खिंचाव होता है । ऐसे में सरसों के तेल की मालिश लाभप्रद होती है । मालिश से मांसपेशियों का तनाव दूर हो जाता है और वे सामन्य स्थिति में आ जाती हैं ।
गर्भावस्था में पेट में दर्द Stomach Pain During Pregnancy
जब गर्भ लगभग 5 माह का हो जाता है तो कभी-कभी पेट में दर्द होने लगता है, परन्तु यह दर्द प्रसव के समय के दर्द से भिन्न होता है, यदि काम करते समय दर्द उठे तो आराम करने से दर्द अपने आप दूर हो जाता है और यदि लेटे रहने से दर्द उठा हो तो थोड़ा चलने-फिरने से दर्द जाता रहता है । यदि ज्यादा परेशानी हो तो डाक्टर को दिखाकर कोई दवा लें ।
गर्भावस्था में पीठ में दर्द Back Pain During Pregnancy
गर्भकाल में कभी-कभी पीठ में दर्द की शिकायत हो जाती है । ऐसे में मालिश करवा लें तो दर्द ठीक हो जाती है । यह दर्द भी पेट के भारी हो जाने से मांसपेशियों के खिंचाव से कभी-कभी उत्पन्न होता है । अत: मालिश से मांसपेशियां तनाव रहित हो जाती है ।
गर्भावस्था की कुछ गम्भीर शिकायतें Other Serious Complaints During Pregnancy
गर्भकाल के दौरान कभी-कभी कुछ ऐसी गम्भीर परिस्थितियां भी आ जाती हैं कि सीधे डाक्टर की सहायता लेना ही आवश्यक और उचित होता है । इसी तरह की कुछ परिस्थितियां नीचे दी जा रहीं हैं –
- आखों में धुंधला दिखना और चक्कर आना ।
- यदि चेहरे, आखों पर सूजन आ जाए तो ।
- पेट में बहुत तेज दर्द होने पर कोई दवा प्रयोग न करें ।
- लगातार यदि कई बार रह-रह कर उल्टी आए ।
- ठंड लगकर बुखार आ जाए ।
- योनि मार्ग से यदि रक्त निकलने लगे |
- प्रसव से पहले यदि पानी की थैली फट जाए और पानी निकलने लगे तो ।
- 14 सप्ताह बाद भी यदि गर्भस्थ शिशु की कई घण्टों तक हरकत महसूस न हो तो |
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