
योग से निकालें शरीर के विष और रहें स्वस्थ Remove Poison From Body By Yoga – ऋतु परिवर्तन का समय शरीर में जुट गए विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का सबसे अच्छा अवसर होता है | उस समय ज्वर, पेचिश तथा जुकाम-खांसी आदि के रूप में प्रकृति शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालती है | हालांकि अक्सर ऐसी स्थिति में लोग दवाएं ले लेते हैं और उनके बाहर निकलने की प्रक्रिया को रोक देते हैं | क्योंकि आम तौर पर लोग यह नहीं जानते कि विषाक्त पदार्थों के निकलने में यदि बाधा उत्पन्न की जाती है तो बाद में दूसरे गंभीर रोगों के कारण बन जाते हैं |
अगर सामान्य तौर पर देखा जाए तो बरसात के दिनों में ज्वर, वायरल संक्रमण, पेचिश, जुकाम, चेचक, कब्ज, पीलिया, फोड़े-फुंसी तथा त्वचा रोग होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं | इससे प्रमुख कारण हमारी आप्रकृतिक जीवनशैली, अनुपयुक्त खान-पान, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना तथा मानसिक एंव भावनात्मक असंतुलन आदि हैं | योग तथा यौगिक जीवनशैली के अभ्यास से इन सभी समस्याओं का एक साथ निदान संभव है | नियमित रूप से योग का अभ्यास करने वाले लोगों को ये समस्याएं होती ही नहीं और यदि समस्या आने के बाद भी यौगिक क्रियाओं का अभ्यास किया जाए तो इनके निदान में मदद मिलती है | योग की कुछ क्रियाएं शरीर में जुट गए विषाक्त पदार्थों का निष्कासन करती हैं तथा आसन, प्राणायाम और ध्यान जैसी कुछ क्रियाएं शरीर एंव मन को स्वच्छ करती हैं | हर समस्या के निदान के लिए प्रमुख यौगिक क्रियाएं निम्न हैं-
रक्त संचार के लिए आसन Yogasana For Good Blood Circulation
इनके अभ्यास से रक्त संचरण तीव्र होता है तथा ग्रंथियां क्रियाशील एवं संतुलित हो जाती हैं | ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होते हैं | इसके लिए उपयोगी आसन हैं- सर्वांगासन, हलासन, पश्चिमोत्तान आसन, वज्रासन, उष्ट्रासन, मेरुवक्रासन, अर्धमत्स्येंद्र आसन, भूनमन आसन, त्रिकोणासन, हनुमान आसन तथा पवनमुक्तासन आदि | मेरुवक्रासन इनमें वर्षा ऋतु में होने वाली मुश्किलों से छुटकारा दिलाने के लिए सर्वोत्तम है |
ऐसे करें मेरुवक्रासन How To Do Meru-Vakrsan
अपने दोनों पैरों को सामने की ओर सीधा फैलाकर बैठ जाएं | बाएं पैर को घुटने से मोड़कर इसके पंजे को दाएं पैर की जांघ के पास रखें | बाएं पैर का घुटना छाती के पास आ जाएगा | अब दाएं हाथ को बाएं घुटने के पार ले जाते हुए पंजे को स्पर्श करें | बायां हाथ शरीर के धड़ को बाई ओर मोड़ते हुए पीठ के पीछे रखें | इस स्थिति में जितनी देर तक आराम से रुक सकें उतनी देर तक रुकें | यही क्रिया दाएं तथा बाएं हाथ से भी करें | इसे दोनों तरफ से 5 बार दुहराएं |
जरूरी है प्राण का संचार Flow of Vital Energy Is Important
शरीर के हर अंग में प्राण का पर्याप्त संचार तथा मन को एकाग्र करने में मदद कर प्राणायाम शरीर को लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को इस हद तक बढ़ा देता है कि छोटे-मोटे संक्रमण का तो शरीर पर असर ही नहीं पड़ता है | इसके लिए उपयुक्त प्राणायाम है- भस्त्रिका, कपालभाति, भ्रामरी तथा नाड़ीशोधन | खासतौर से बरसात के दिनों में भस्त्रिका प्राणायाम सबसे कारगर देखा गया है | इसके अभ्यास की विधि इस तरह है:
भस्त्रिका प्राणायाम Bhastrika Pranayam
जमीन पर ध्यान के किसी भी आसन में बैठ जाएं | पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या वज्रासन- इनमें से जो भी आपके लिए सुविधाजनक हो, उसका प्रयोग कर सकती हैं | अगर आपको जमीन पर बैठने में कोई कष्ट हो तो कुर्सी पर भी बैठ सकती हैं | शर्त यह है कि रीढ़, गला व सिर एक सीध में हों | हथेलियां घुटने पर स्थिरता से मौजूद हों तथा आंखें बहुत ढीली बंद हों | किसी प्रकार का कोई अतिरिक्त दबाव शरीर के किसी भी अंग पर न दें | अब नाक से ही एक हल्के झटके से श्वास बाहर निकालें तथा हल्के झटके के साथ ही फिर उसी श्वास को अंदर लें | यह भस्त्रिका प्राणायाम की एक आवृति है | लगातार इसकी 15 से 20 आवृत्तियों का अभ्यास करें | कुछ क्षण रुक कर इसके अगले चक्र का अभ्यास करें | इस तरह इसके 5 से 10 चक्रों का अभ्यास करें |
सावधानी Be Careful
उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा अल्सर से पीड़ित व्यक्ति इस प्राणायाम का अभ्यास न करें |
ध्यान एंव शिथिलीकरण Mediation and Relaxation
तनाव, निराशा, कुंठा तथा अशांति भी रोग एवं समस्या के प्रमुख कारण होते हैं | इन कारणों का समाधान ध्यान एवं योगनिद्रा के द्वारा पूरी तरह संभव है | ध्यान के अभ्यास से चेतन मन के अतिरिक्त अचेतन मन में छुपे तनाव को भी सतह पर लाकर दूर किया जा सकता है | इसलिए, प्रतिदिन 10 से 15 मिनट तक किसी एक विषय पर आंख बंद कर मन को एकाग्र करने का अभ्यास करें |
भोजन हो सादा Have Simple And Non-spicy Food
बरसात के मौसम में सादा, पोषक और सात्विक आहार लेना चाहिए | इस समय पत्ते वाली सब्जी तथा दूध एवं दुग्ध पदार्थों का सेवन कम से कम करना चाहिए | फास्ट फूड, जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक्स, शराब तथा धूम्रपान आदि पर अंकुश रखना चाहिए | मौसमी फल तथा हरी सब्जियों का सेवन सफाई का ध्यान रखते हुए पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए | भोजन निश्चित समय पर लेने की आदत डालनी चाहिए तथा भोजन के समय पानी नहीं पीना चाहिए |
जीवनशैली में सुधार Improve Lifestyle Is Needed
यदि अपने शरीर एवं मन को लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखना चाहती हैं तो जरूरी है कि अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाएं | बेहतर होगा कि अपनी जीवनशैली को प्राकृतिक, व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक बनाएं | सुबह सूर्योदय के पूर्व उठने तथा रात में जल्दी सो जाने की आदत डालें | खान-पान तथा आहार-विहार में संतुलन ले आएं | जीवन में कर्म तथा विश्राम दोनों को पर्याप्त महत्व दें | भागदौड़ की जीवनचर्या में विश्राम को दरकिनार न कर दें | विश्राम की भ्रामक धारणा धूम्रपान, मदिरापान, तेज संगीत आदि से बचें | इनके अलावा कुछ अन्य उपाय भी हैं, जिन पर अमल करना आपके लिए काफी लाभकारी साबित हो सकता है | मसलन-
1. संतुलित जीवन जीने के लिए सत्संग, स्वाध्याय का सहारा लेना चाहिए | भौतिकता तथा आध्यात्मिकता का संतुलन बनाकर जीवन जीना ही सच्चा संतुलन है | स्वाध्याय इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |
2. प्रतिदिन थोड़ा घूमने-टहलने की आदत डालनी चाहिए | दिन भर थोड़े-थोड़े अंतराल से गहरी-गहरी सांसे लेनी चाहिए |
3. प्रतिदिन स्नान से पूर्व सूखे तौलिये को भिगोकर उससे पूरे शरीर को रगड़कर मालिश करने के बाद ही स्नान करना चाहिए |
4. चोकरयुक्त आटे का सेवन करें | गेहूं तथा चने के मिश्रित आटे का सेवन करना चाहिए |
5. दिन में लगभग 4 लीटर पानी पीने की आदत डालनी चाहिए |
6. अतिआहार से हमेशा बचना चाहिए | रात में बिस्तर पर जाने के 3 घंटा पूर्व भोजन कर लेना चाहिए |
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